हिर॑ण्यकेशो॒ रज॑सो विसा॒रेऽहि॒र्धुनि॒र्वात॑इव॒ ध्रजी॑मान्। शुचि॑भ्राजा उ॒षसो॒ नवे॑दा॒ यश॑स्वतीरप॒स्युवो॒ न स॒त्याः ॥
hiraṇyakeśo rajaso visāre hir dhunir vāta iva dhrajīmān | śucibhrājā uṣaso navedā yaśasvatīr apasyuvo na satyāḥ ||
हिर॑ण्यऽकेशः। रज॑सः। वि॒ऽसा॒रे। अहिः॑। धुनिः॑। वातः॑ऽइव। ध्रजी॑मान्। शुचि॑ऽभ्राजाः। उ॒षसः॑। नवे॑दाः। यश॑स्वतीः। अ॒प॒स्युवः॑। न। स॒त्याः ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब ७९ वें सूक्त का आरम्भ किया जाता है। उसके प्रथम मन्त्र में विद्युत् अग्नि कैसा है, इस विषय का उपदेश किया है ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ कथंभूतो विद्युदग्निरित्युपदिश्यते ॥
हे कुमारिका ब्रह्मचारिण्यो ! रजसो विसारे हिरण्यकेशो धुनिरहिरिव ध्रजीमान् वात इव उषस इव शुचिभ्राजा न वेदा यशस्वतीरपस्युवो नेव यूयं सत्या भवत ॥ १ ॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात अग्नी, ईश्वर व विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे याच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी. ॥